नालंदा | बिहारशरीफ गली-नाली के गंदे पानी से जिले के तालाबों में लोकल मछली व जलीय जीव जंतु नहीं पनप रहे हैं. गंदे पानी के कारण तालाबों में उपजने वाले पानी फल की खेती पर भी खतरा उत्पन्न हो गया है. गली-नाली के गंदे पानी से तालाबों में अमोनियम की मात्रा काफी बढ़ रही है. जिले में सिर्फ बंदोबस्त सरकारी तालाबों की संख्या 823 हैं, जो 2349.96 हेक्टेयर में फैला हुआ है.
फिलहाल पंचायती राज विभाग के द्वारा तैयार होनेवाले गली-नाली के माध्यम से घर-घर के गंदे पानी तालाबों में जमा होने लगा है. तालाबों को शौचालय व गली-नाली से जोड़ने से उसके पानी में अकार्बनिक तत्व के साथ अमोनियम की मात्रा भी बढ़ी है. ऐसे में इन तालाबों का पानी फसल के लिए पटवन के लायक भी नहीं रह गया है. यह तालाब नालों और गंदे पानी के संग्रह क्षेत्र बन कर रह गया है.
गली-नाली शौचालय के पानी से तालाबों में बढ़ रही अमोनियम की मात्रा
नल-जल और गली-नाली योजना से भूजल संचयन प्रक्रिया भी प्रभावित हो रहा है. गत पांच वर्षों से जिले के 2146 वार्डों में से करीब 2116 वार्डों में गली-नाली को पक्का कर दिया गया है. इन वार्डों के घरों से निकलनेवाले गंदे पानी गली- नाली सहारे संबंधित गांव के तालाबों में जमा हो रहे हैं.
हालांकि मत्स्य विभाग एक ओर बंदोबस्त तालाबों में मछली के अलावा मखाना उत्पादन करने की योजना बना रहा है. दूसरी ओर पंचायती राज विभाग गांव-गांव में गली-नाली योजना से घर-घर के गंदे पानी तालाबों में बहाने की व्यवस्था कर रहा है.
सरकार कर रही खरबों रुपये बर्बाद
नतीजतन सरकार की ओर से खरबों रुपये बर्बाद कर खेती व्यवस्था को चौपट करने का संसाधन तैयार किया जा रहा है क्योंकि जिले की खेती व्यवस्था तालाबों और पोखरों पर आधारित है. वर्तमान में सैकड़ों सरकारी तालाब व पोखर गंदे पानी से बर्बाद हो रहे हैं. शौचालय से निकलनेवाले पानी भी गली-नाली के माध्यम से तालाबों में जमा होते हैं.
नतीजतन अमोनियम युक्त पानी से जिले के तालाबों से गरई, मांगुर, टेंगड़ा, पोठिया जैसे लोकल मछलियां का उत्पादन लगभग समाप्त हो गया है. दूसरी ओर गली-नाली के गंदे पानी के बहाव से तालाबों में उपजनेवाला पानी फल (सिंघाड़ा) की खेती भी लगभग समाप्त हो गयी. बरसात के दिनों में तालाब व पोखरों में पानी फल (सिंघाड़ा) की खेती होती थी, जो अब लगभग नहीं के बराबर होती है.
अधिकारियों का क्या कहना है
नालंदा जिला पंचायती राज पदाधिकारी मो शोएब अहमद कहतें हैं कि गांवों में नल जल से निकलने वाले पानी को गली-नाली के माध्यम से तालाबों में गिराने की पहल की गयी. अब तालाबों में अमोनियम की मात्रा बढ़ने से मछली, जलीय जीव-जंतु मरने और पानी फल की खेती प्रभावित होने की बात सामने आ रही है. इस बात को सरकार तक पहुँचाया जायेगा.
पानी बर्बादी रोकने और को कीचड़ मुक्त करने को लेकर नाली को तालाबों से जोड़ने प्रयोग किया गया. दूसरी ओर गांवों में पक्की गली- नाली से प्रभावित भू-जल संग्रह प्रक्रिया को बैलेंस करने के लिए गांवों में जगह-जगह सोख्ता बनाया जा रहा है. जिले के विभिन्न गांवों में 2086 सोख्ता बनाने का लक्ष्य है, जिनमें अब तक 1367 सोख्ता बन गये हैं.