नालंदा न्यूज़ (आशुतोष कुमार आर्य) | भारत ही नहीं दुनियाभर के लोग कश्मीर को जन्नत मानते हैं। लेकिन, यह बहुत कम ही लोग जानते हैं कि उस जन्नत में रहने वाले लोगों का ईदगाह नालंदा में है। उसे लोग प्यार से छोटा कश्मीर कहते हैं। इस्लामपुर प्रखंड में बसा यह गांव कश्मीरीचक अपने गर्भ में 400 साल पुराना इतिहास छुपाये हुए हैं। कमोबेश सालोंभर कश्मीरी यहां पहुंचते हैं। और, मुगल काल में आजाद कश्मीर के राजा युसूफ शाह चक, पत्नी हब्बा खातून व बेटे याकूब शाह चक की कब्रों पर माथा टेकते हैं। लेकिन, 28 दिसंबर को हर साल लगने वाले उर्स में देशभर के हजारों लोग यहां आते हैं।
इस गांव को युसूफ शाह चक ने ही बसाया था। इस स्थान की महत्ता वर्ष 1977 में तब और बढ़ गयी थी, जब जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन सीएम फारूक अब्दुल्लाह अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों से संबंधित टीम को लेकर यहां पहुंचे थे। उनके नाम पर बनी सड़क ‘अब्दुल्लाह रोड’ इसका आज भी गवाह है। उन्होंने इस स्थल की पौराणिक महत्ता पर विशेष अध्ययन के लिए दल बनाया था।
फिर है सुर्खियों में : जम्मू एंड कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक़ अब्दुल्लाह के बेटे व पूर्व सीएम उमर अब्दुल्लाह ने हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम ट्वीट किया है। उसमें कश्मीरीचक के विकास का आग्रह किया है। तबसे यह स्थान फिर से सुर्खियों में आ गया है। देश-विदेश के लोगों का यहां आने का सिलसिला तेज हो गया है।
जमीन की पैमाइश : इनके वंशज डॉ. अब्दुल रशीद खान ने बिहार सुन्नी वक्फ बोर्ड में इसकी जमीन रजिस्टर करायी। इनके पोते यासीर रशीद खान इसकी देखरेख करते हैं। फारूक़ अब्दुल्लाह के फरमाइश पर हिलसा के पूर्व एसडीओ वैभव चौधरी ने युसूफ शाह चक की जमीनों की पैमाइश करायी थी।
क्या है इतिहास
मुगलों को दो युद्धों में धूल चटाने वाले कश्मीर के शासक युसूफ खान चक वर्ष 1576 से 1586 तक वहां के राजा रहे। इसी दौरान अकबर की विशाल सेना आने की सूचना पर संधि के लिए सात अप्रैल 1586 को आगरा पहुंचे। लेकिन, धोखे से अकबर ने उन्हें कैद करके बंगाल राज्य के बेशवक (इस्लामपुर, नालंदा) में मड फोर्ट (मिट्टी के बने किले) में कैद कर दिया। 30 माह की कैद के बाद 5 गांवों की मनसबदारी के साथ ही सेनापति बनाया।
लेकिन, उड़ीसा जंग के दौरान जगन्नाथपुरी में उनकी मौत हो गयी। इसके बाद उनकी लाश को वहां से कश्मीरीचक लाया गया। यहां से करीब 200 गज दूर बेशवक में उनकी कब्र बनायी गयी। बाद में उनकी पत्नी व संगीतकार हब्बा खातून के साथ ही बेटे याकुब खान चक को भी यहीं दफन किया गया। इसका वर्णन अकबरनामा, आइन-ए-अकबरी, बहरिस्तान-ए-शाही में मिलता है।
नया नजरिया : कश्मीर के लोग यहां इबादत के लिए आते हैं। अगर इस स्थल को संरक्षित करके सैलानियों के ठहरने का इंतजाम कर दिया जाये तो नालंदा के पर्यटक स्थलों में इसका नाम शुमार हो जाएगा। स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा और उनकी आर्थिक उन्नति होगी।
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(यह रिपोर्ट मूल रूप में हिंदुस्तान अख़बार में पहले प्रकाशित की गई है.)