बिहारशरीफ में कोरोना ने तोड़ी कोचिंग संचालकों की कमर, करोड़ों का होगा नुकसान

बिहारशरीफ। शिक्षा के क्षेत्र में हाल के दशक में कोचिंग संस्थानों ने अपनी उपयोगिता इस प्रकार सिद्ध किया है कि विद्यार्थी बिना कोचिंग संस्थानों में पढ़े सफलता की उम्मीद ही नहीं करते हैं। मेडिकल तथा इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं की बात हो अथवा सरकारी नौकरी की बात हो, हर जगह कोचिंग संस्थानों का ही परचम लहराता है।

जिले के शहरों से लेकर कस्बों तक में छोटे- बड़े लगभग 600 कोचिंग संस्थान खुले हैं, जिला मुख्यालय के कुछ मोहल्ले तो भिन्न-भिन्न नामों के कोचिंग संस्थानों से भरे पढ़े हैं। कई स्थानों पर तो दिल्‍ली, मुंबई तथा राजस्थान की प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थानों की फ्रेंचाइजी तक खुली है तो कई कोचिंग संस्थान एक-एक कमरों में भी चलाये जा रहे हैं।

जब से कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए जिले में लॉकडाउन लागू हुआ है, तभी से इन सभी कोचिंग संस्थानों में ताले लटक रहे हैं, छात्रों से गुलजार रहने वाले मोहल्लों तथा गलियों में वीरानी छायी हुई है। विगत 24 मार्च से लागू लॉकडाउन के बाद से इन कोचिंग संस्थानों में ताले लटक रहे हैं।

कोचिंग संचालकों की आमदनी ठप है। दूसरी ओर विद्यार्थियों की पढ़ाई भी बंद है। कोरोना के लॉकडाउन का प्रभाव तो बढ़े संचालकों पर कम पड़ रहा है, लेकिन छोटे कोचिंग संचालकों की आय का प्रमुख साधन होने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति गंभीर होती जा रही है। कई कोचिंग संचालकों ने बताया कि यदि यह लॉकडाउन और बढ़ेगा तो उनकी परेशानी भी और बढ़ेगी।

कोचिंग संस्थानों के बंद रहने का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव विद्यार्थियों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। विशेषरूप से प्रतियोगी परीक्षाओं तथा विभिन्‍न प्रकार की नौकरियों के लिए तैयारी करने वाले विद्यार्थी समय बीतने के साथ-साथ हताश होते जा रहे हैं। यदि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद परीक्षाओं की तिथि घोषित होती है तो विद्यार्थी बिना तैयारी के ही परीक्षा में शामिल होने को विवश होंगे।

जिले के सामान्य कोचिंग संस्थानों द्वारा अपने विद्यार्थियों के लिए कोई ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था नहीं की गयी है। विशेष रूप से छोटे-छोटे संस्थानों के पास इस प्रकार की कोई बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है। वे चाहकर भी छात्रों की कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में विद्यार्थी भी घरों में ही जैसे-तैसे पढ़ाई कर रहे हैं।

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