बिहारशरीफ । जैविक खेती को भूल चुके जिले के किसानों को एक बार फिर से इसकी खेती करने को प्रेरित किया जा रहा है। वर्षो पहले जैविक खेती में नालंदा की अलग पहचान थी। जैविक खेती के दौरान जिले के किसानों ने न केवल धान, गेहूं, प्याज व आलू के उत्पादन का रिकॉर्ड बनाया था। कई रिकॉर्ड विश्वस्तरीय थे, जबकि कुछ रिकॉर्ड राष्ट्रीय स्तर के थे। जैविक खेती में नालंदा का सूबे में बोल बाला था।
नालंदा जिले की जैविक खेती को देखने और समझने के लिए देश भर के कृषि वैज्ञानिक, प्रगतिशील किसान के अलावा दूसरे प्रदेशों के कृषि वैज्ञानिक व किसान नालंदा आते थे। समय बीतने के साथ सरकार व विभाग इस दिशा में उदासीन होती चली गयी। इसका नतीजा यह हुआ कि घर-घर व गांव-गांव में होने वाली मशरूम की खेती व जैविक सब्जी की खेती बंद हो गयी।
102 कलस्टर का हुआ निर्माण, जैविक कोरिडोर के तहत होगी जैविक खेती
प्रोत्साहन न मिलने से किसान भी जैविक खेती से मुंह मोड़ते चले गये। अब एक बार फिर से जैविक कोरिडोर के तहत पटना से नालंदा तक जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस योजना के तहत जिले में करीब 2000 एकड़ भूमि में जैविक खेती की योजना तैयार की गयी है। इसके लिए कलस्टर का निर्माण किया गया है। जिले के तीन प्रखंडों में 102 कलस्टर का निर्माण किया जा चुका है।
जैविक के नोडल पदाधिकारी पुरुषोत्तम कुमार सिंह ने बताया कि 2020-21 में जैविक खेती को फिर से धरातल पर उतारने की पहल की जा रही है, अब तक जिले में 102 कलस्टर बनाया जा चुका है, जिसमें से 72 कलस्टर के सर्टिफिकेशन की जिम्मेदारी शील बायोटेक कंपनी को दी गयी है।

ऑरगेनिक खेती के लिए तीन साल तक मिलेगा अनुदान
जैविक खेती करने वाले किसानों को प्रति एकड़ 11500 रुपये अनुदान दिये जायेंगे। एक किसान अधिकतम 2.5 एकड़ भूमि में जैविक खेती कर सकते हैं। यह कार्यक्रम तीन वर्ष का है। जैविक खेती के दौरान धीरे-धीरे खेत को ऑरगेनिक फ्री कर देना है। जैविक खेती के दौरान किसानों को जैविक कीटनाशक व उर्वरक का ही इस्तेमाल करना है। खेती करने के पहले किसान के खेत की मिट्टी में केमिकल की जांच होगी।
सी-3 सर्टिफिकेट मिलने के बाद कलस्टर होगा पूरी तरह जैविक
एक साल की खेती के बाद मिट्टी कितनी जैविक हुई है, इसकी जांच होगी। सब कुछ ठीक रहा तो ऐसे किसानों को सी-वन सर्टिफिकेट दिया जायेगा। दूसरे साल उस किसान को जैविक खेती के लिए फिर 11500 रुपये का अनुदान दिया जायेगा। दूसरे साल के बाद सी-2 सर्टिफिकेट मिलेगा। खेत की मिट्टी व पटवन में इस्तेमाल पानी की जांच होगी।
इसी प्रकार सब कुछ ठीक रहा तो तीसरे वर्ष की खेती के बाद सी-3 का सर्टिफिकेट मिलेगा। सी-3 सर्टिफिकेट मिलने के बाद पूरा कलस्टर जैविक खेती के योग्य हो जायेगा। जो किसान इस मापदंड को पूरा नहीं करेंगे, उन्हें कलस्टर से निकाल दिया जायेगा।