कुरूक्षेत्र से कुरूक्षेत्र तक ? वैश्विक महामारी में देश के लिए सवालिया निशान छोड़ गए रोहित !

बिहारशरीफ | वरिष्ठ पत्रकार मनोरंजन कुमार की कलम से

सरदाना नहीं रहे या यूं कहें कि राष्ट्रवादी पत्रकारिता का प्रकाश पुंज अब हमारे बीच नहीं रहे। रोहित जब कुरुक्षेत्र में पंचतत्व में विलीन हो रहे थे तब हमारे कानों में “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भव-ति भारत, अभ्युत्थान-मधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्” के गीता मंत्र गूंज रहे थे। यहां श्री कृष्ण अर्जुन को धर्म-अधर्म का पाठ पढ़ा रहे थे। अर्जुन को धर्म युद्ध का उपदेश दे रहे थे। कुछ वैसा ही धर्म युद्ध हमारे समाज के लिए सरदाना लड़ रहे थे। श्री कृष्ण ने इस धर्म युद्ध को रोकने का भरसक प्रयास किया था तभी तो शांति दूत बनकर कौरवों के दरबार में उन्होंने कहा था दे दो तुम केवल 5 ग्राम रखो अपनी धरती तमाम। तब भी धृतराष्ट्र की आंखें नहीं खुली। यही बात तो ताल ठोक के से दंगल तक रोहित करते रहे। उनका 5 ग्राम था रोटी, कपड़ा, मकान, स्वाभिमान और स्वदेश प्रेम।

वह हर गूंगी बहरी सरकार को शंखनाद कर जगाने का भरसक प्रयास करते रहे। किसी भी व्यवस्था के कान उमेठने में उन्होंने गुरेज नहीं किया।मामला चाहे कश्मीर समस्या का हो या जेएनयू विवाद कन्हैया की बांसुरी बजाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। तथाकथित राष्ट्रवादी पत्तलकारों ने इन पर हिंदूवादी होने का बिल्ला लगाने मे कोई कोर कसर नहीं छोड़ी पर जुनूनी सरदाना को यह कहां मंजूर था। इन्होंने हमेशा बङी लङाई लङी। इनके व्यक्तित्व पर 22 दिसंबर 1980 को कही गई ओशो की बात खरी उतरती है। जिसमे एक प्रश्नोत्तर में उन्होंने कहा था ‘छोटी चीजों में मुझे रस नही, मेरी रूचि बहुत सीधी -सादी है, मुझे श्रेष्ठतम में ही रस है और जब उलझना ही है तो पूरा क्यो नही’ । ऐसे ही थे सरदाना कोई काम अधूरा नही छोङना चाहते थे ।

कुछ ऐसा ही वाक्या बंगाल और ममता के संदर्भ मे देखने को मिला जब रोहित ने कहा कि क्या बंगाल को बांटकर ममता जिन्ना बनना चाहती है। ऐसा था उनका राष्ट्रवाद। हिंदी पत्रकारिता मे राष्ट्रवादी विचार के पुरोधा थे रोहित। उन्हे ये कतई मंजूर नही था कि कोई वंदेमातरम् या भारत माता की जय का अनादर करे। 13 वर्षो तक जी न्यूज मे अपनी महती भूमिका निभाने वाले रोहित से किसी को वैचारिक मतभेद भले ही हो पर यारों का यार था वो। कई मौके पर मेरा भी सहायक एवं पथप्रदर्शक बना। उसे ये कतई मंजूर नही था कि कोई उसके देश और धर्म पत्रकारिता पर अंगुलि उठाए। तभी तो कई बार उसने कहा भी कि मै देश को सर्वोपरि मानता हूं। अगर देश रहेगा तभी तो मै पत्रकारिता करूंगा।

आजतक के दंगल को भला कैसे कोई भूल सकता है। ऐसा प्रतीत होता था कि प्रभु ने दिनकर कि यह पुकार सुन ली कि “रे रोक युधिष्ठिर को न यहां, जाने दे उसको स्वर्ग धीर,पर फिरा हमें गांडीव गदा, लौटा दे अर्जुन भीम वीर”। जी न्यूज के भीम अगर सुधीर चौधरी बने तो उसके अर्जुन थे रोहित।इन्होंने ही मिलकर बनाई थी जी न्यूज नंबर वन टीम। तभी तो मर्माहत चौधरी ने कहा कि अभी तक तो मै मान रहा था कि ये टीम सिर्फ बिखरी है परंतु आज ऐसा लगता है कि यह टीम टूट गई। रोहित तो चला गया परंतु कई यक्ष प्रश्न वो छोड़ गया है। आज सभी को मिलकर इस गूंगी बहरी व्यवस्था के खिलाफ दूदूंभि बजाते रहनी होगी तभी हमारे देश धर्म की रक्षा हो सकती है। रोहित कह गया है आई है काली रात, पहरूये सावधान रहना।

अनंत श्रद्धांजलि॥

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