राजगीर/नालंदा | पंच पहाड़ियों में बसी राजगीर की यह वादियाँ आज भी मगध के उत्कर्ष, शक्तिशाली साम्राज्य के दास्तान की कहानियाँ इसके जीवंत उदाहरणों के साथ देखने को यहाँ मिलता है। चक्रवर्ती मगध सम्राट जरासंध के शासनकाल में निर्मित यह सुरक्षा बंकर का निर्माण पहाड़ी चट्टान से बनाया गया है। पत्थर के बड़े चट्टान से लगभग 15 फिट लम्बी और 6 फिट चौड़ी इस सुरक्षा कैम्प से राजगीर के सभी पांचो पहाड़ियों पर नज़र रखी जाती थी।
सुरक्षा बंकर में दो गुणा दो साइज का खिड़की से बाहरी लोगों पर गिद्ध दृष्टि से नज़र रखी जाती होगी। मगध के शासन काल में राज्य के अंतर्गत सुरक्षा व्यवस्था कि इतनी मुकम्मल व्यवस्था ही शासन के पराक्रमी सोच को दर्शाता है। पहाड़ के ऊपर अंतिम किनारे पर इस तरह का निर्माण शायद प्राचीन युग में ही संभव है। प्राचीन राजगीर के ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं पौराणिक धार्मिक महत्त्वों के जीवंत धरोहरों के उदाहरण ही मगध के शासन को सर्वोतम होने का एहसास कराता है
महाभारत काल का इतिहास
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लेकिन वर्तमान समय मे ऐसे ऐतिहासिक अवशेषों की उपेक्षा भी सरकार की उदासीन मंशा कि पोल खोलता है। सम्राट जरासंध के शासन के निर्मित ऐसे ऐतिहासिक अवशेष शासन, सरकार और आम जनता के दृष्टि से ओझल है। 5500 साल पूर्व महाभारत काल का इतिहास उपेक्षा कि दास्तां बयाँ करती है लेकिन अभी तक सरकार और शासन द्वारा इन ऐतिहासिक धरोहरों को सुरक्षित करने सहेजने की दिशा में कोई क़दम नही उठाया गया है।
राजगीर के स्थानीय गणेश मंडप के पुजारी अजय कुमार जी ने कहा कि राजगीर के इतिहास के धरोहरों को संरक्षण करने के साथ इसके विकास और प्रचार प्रसार के लिए सरकार को प्रयास करना चाहिए। इतिहास से जुड़े तथ्य की सरकारी स्तर पर खोज और विकास का कार्य किया जाना चाहिए।
वही मगध के प्राचीन सुरक्षा कैम्प का अध्ययन करने पहुँचे अखिल भारतीय जरासंध अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय महासचिव श्याम किशोर भारती ने बताया कि अखाड़ा परिषद की टीम द्वारा ऐसे ऐतिहासिक अवशेषों की तलाश कर आम आदमी की नज़र से ओझल अवशेषों की रक्षा सुरक्षा संकल्प के तहत इसके विकास के लिए प्रयासरत है।
कुछ तो है उन गुफाओं के अंदर!
राजगीर में महाभारत कालीन ऐतिहासिक अवशेषों के सरकार द्वारा अध्ययन किया जाय और इससे जुड़े जो भी ऐतिहासिक तथ्य, अवशेष है उसके विकास की योजनायें बनाई जाय। उन्होंने कहा कि लगभग 500 वर्ष पूर्व खंडित अयोध्या मन्दिर के निर्माण के लिये सरकार और विभिन्न संगठन प्रयासरत है उसी तरह महाभारत काल के ऐतिहासिक अवशेषों और जीवंत धरोहरों के विकास में सरकार और संस्थाए क्यों नही रुचि लेती है।
सरकार, संविधान और संस्थाये धार्मिक आधार पर मंदिर, मस्जिदों के विकास के लिए प्रयासरत रहती है लेकिन ऐतिहासिक, पुरातात्विक महत्त्व के धरोहरों की उपेक्षा से देश की संस्कृति, सभ्यता और इतिहास को मिटाने का कार्य हो रहा है।
राजगीर के महाभारत काल के जरासंध अखाड़ा, सिद्धनाथ मंदिर, पिपली गुपफा, गणेश मंडप, सप्तपर्णी गुपफा, सायक्लोपीयन वाल सहित दर्जनों ऐसे ऐतिहासिक अवशेष है जिसको विकसित कर पूरे विश्व को भारतीय प्राचीन इतिहास से अवगत करा देशी विदेशी पर्यटन का प्रमुख केंद्र बनाया जा सकता है। सरकार और प्रशासन को बस इसमें पहल करने की आवश्यकता है, जिससे जीर्ण शीर्ण होते ये अवशेष बच सकते हैं।
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